आज मातृ-दिवस पर
माँ पर कई कविताएँ आईं
मैंने एक भी नहीं पढ़ी
पढ़ता तो दु:ख होता
लज्जित होता
ख़ुद को कोसता
कि
मैंने अपनी माँ को
इतना ऊँचा दर्जा नहीं दिया
इतना महिमामण्डित नहीं किया
जितना इन कविताओं में होता
माँ को बस माँ ही समझा
न देवी माना
न पूजा की
जब से देखा
माँ ही समझा
माँ ही जाना
पत्नी-बेटी-बहन भी हैं वो
लेकिन उन आयामों को मैं क्या समझूँ
जब से देखा
माँ ही समझा
माँ ही जाना
न फूल लाया
न उपहार दिए
हर रोज़ की तरह उनसे दु:ख-सुख की बात की
हमेशा की तरह उन्होंने आशीर्वाद दिए
मातृ-दिवस
हम माँ-बेटे के कैलेण्डर में
रहा हर दिन की तरह
मात्र दिवस
13 मई 2018
सिएटल
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