Monday, May 28, 2018

मैं हूँ नहीं, होने का अहसास हूँ

मैं हूँ नहीं, होने का अहसास हूँ

जिनसे मैं मिलता-जुलता हूँ
फोन पर बातचीत होती है
व्हाट्सैप पर दुआ-सलाम होती है

उन सबको छोड़कर
बाक़ी सब के लिए
यही था
यही हूँ
और यही रहूँगा

चाहे रहूँ 
या ना रहूँ

इसे अमरत्व कहते हैं
अमर होना कहते हैं

——-
कुछ हैं
जिन्हें 
मानव जाति की औसत आयु को
ध्यान में रखते हुए
मैं मान चुका हूँ
कि वे नहीं हैं

जैसे कि
मेरी पाँचवी कक्षा की
प्रिंसिपल मैडम

उनसे मिलना
उनसे सम्पर्क करना
उनके बारे में जानना
मेरे जीवन का हिस्सा कभी नहीं रहा

इसे अपना रास्ता नापना कहते हैं

——
मैं हूँ नहीं, होने का अहसास हूँ

राहुल उपाध्याय | 28 मई 2018 | सिएटल

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


0 comments: