Sunday, September 29, 2024

इतवारी पहेली: 2024/09/29


इतवारी पहेली:


जब से यहाँ गरम ## ## रहा है 

हवाई का यह क्षेत्र #### रहा है


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 6 अक्टूबर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 29 सितम्बर 2024 । हवाई 




Re: इतवारी पहेली: 2024/09/22



On Sat, Sep 21, 2024 at 12:54 PM Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> wrote:

इतवारी पहेली:


कविगणों का पेट भर ## ## #

बेटों का पेट भरे पिता की #### #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 29 सितम्बर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 22 सितम्बर 2024 । टोक्यो 




Saturday, September 28, 2024

मोक्ष

पैदा होते ही मुझे मोक्ष मिल जाता 

तो मैं पूरे जीवन से वंचित रह जाता

न तुमसे मिलता

न उससे बिछड़ता 

न यह सीखता 

न वह सीख पाता

न कविता रचता

न कला का पक्ष रखता

न किसी का सर हाथ में लेता

न किसी का ललाट प्यार से चूमता

न दिन पहाड़ से होते 

न रात मतवाली


राहुल उपाध्याय । 28 सितम्बर 2024 । होनोलुलु



पेंसिल स्केच

मैं रोज़ 

घुसा देता हूँ 

ख़ुद को

एक पेंसिल स्केच में

इस कोशिश में कि

शायद किसी भीड़ का हिस्सा बन जाऊँ 

कोई रंग मुझ पर चढ़ जाए

जीने का उद्देश्य मिल जाए

और

लौट आता हूँ 

कोरा

अनछुआ

बेदाग़ 


राहुल उपाध्याय । 28 सितम्बर 2024 । होनोलुलु



Friday, September 27, 2024

हुआ है प्यार हमें आदमी की तरह

हुआ है प्यार हमें आदमी की तरह

के देंगे छोड़ तुम्हें नौकरी की तरह


के होगा प्यार तुम्हें तो होगा प्यार हमें

न कर सकेंगे कभी प्यार बन्दगी की तरह 


फ़िज़ा में कौन है जो हमें तुम्हारा कहे

जो चल रहा है घड़ी-दर-घड़ी घड़ी की तरह 


यहाँ से लौट भी जाएँ तो क्या हासिल 

वहाँ है कौन जो चाहेगा उसी की तरह


किधर है आश्ना और कौन अजनबी राहुल 

हमें तो जो भी दिखा, दिखा शायरी की तरह


राहुल उपाध्याय । 27 सितम्बर 2024 । होनोलुलु



Thursday, September 26, 2024

कब तक कोई समंदर देखे

कब तक कोई समंदर देखे

कुछ न होता भीतर देखे


बीच में बीच नहीं है लेकिन 

फिर भी बीच कह कर देखें


बरसों बाद नहीं कुछ बदला

कब तक वही मंजर देखें


दुनिया कहे ये जन्नत दुनिया 

कब तक हाँ में हाँ मिलाकर देखें


कितना टेढ़ा दिमाग़ है मेरा ऑटोप्सी करा जी भर देखें


राहुल उपाध्याय । 26 सितम्बर 2024 । होनोलुलु




समंदर को कोई कितना देखे

समंदर को कोई कितना देखे

रेत पे सर घिसता देखे


सूरज को कोई कितना देखे

सुबह-शाम उगता-डूबता देखे


कुछ बदलें नज़ारे, कुछ मज़ा भी आए

पल-पल कुछ बदलता देखे


कोई काम भी हो, कोई वजह भी हो

बिन बात के आदमी क्या-क्या देखे


तनहा-तनहा क्या-क्या देखे

कोई साथ में हो तो कुछ ना देखे


राहुल उपाध्याय । 26 सितम्बर 2024 । होनोलुलु 



Monday, September 23, 2024

समंदर के अंदर एक तूफ़ान है

समंदर के अंदर एक तूफ़ान है

नटी के तट पर एक उफान है

हसरतें-चाहतें 

किसी एक की जागीर नहीं 

जितनी इधर हैं

उतनी उधर भी तो हैं


जीवन के पथ पर

ये कैसा मोड़ है

दिन हैं सुहाने

और मन मोर है 


मैं पाऊँ और न गाऊँ 

ये कैसी प्रीत है

बढ़-चढ़ कर बताऊँ 

ये मेरी रीत है


राहुल उपाध्याय । 24 सितम्बर 2024 । टोक्यो 


मैं ढूँढता रहा तुम्हें

मैं ढूँढता रहा तुम्हें 

उन-उन गलियों में

जहां से होकर तुम गुज़री थी

ढूँढता रहा 

तुम्हारा अक्स

तुम्हारी ख़ुशबू 

तुम्हारी पहचान 

तुम्हारा चिन्ह 

तुम्हारे मोती जैसे दांतों की चमक 

गिंज़ा डिस्ट्रिक्ट की चमचमाती दुकानों में


पीता रहा गर्म पानी

खाता रहा एडामामे

शायद तुमने भी यही

खाया-पिया होगा


टीम लैब के फ़र्श पर

बड़ी देर तक नंगे पाँव रहा 

कि कहीं ये गर्माहट जो है

तुम्हारे तलवों की तो नहीं?

क्या यह वही पानी है

जिसमें भीगने से तुमने

प्लाज़ो बचाई होगी?

क्या इसी लॉकर में तुमने 

अपना बैग और जूते रखे थे?

क्या इन्हीं फूलों के नीचे 

तुम बैठी थी?


शहर तो

अच्छा है ही

तुम्हें ढूँढना

इसे और मनमोहक बना गया

हर कोने में मेरी आँख गड़ी रही

पाँचों इन्द्रियॉ 

ओवरटाइम काम करती रहीं 


राहुल उपाध्याय । 23 सितम्बर 2024 । टोक्यो 




Saturday, September 21, 2024

इंसान

मैं जानता हूँ 

वह इंसान है


प्यार भी करती है

और ग़ुस्सा भी

समझती भी है

और अंजान भी


ग़ुस्सा करती भी है

तो सिर्फ़ एक बार

पूरे दिन में

सिर्फ़ एक बार


मुझे इतना भरोसा नहीं है मुझ पर

जितना है उस पर 


समझ नहीं आता कि

जिसे पूजना चाहिए 

न जाने क्यों 

मेरी दोस्त है


राहुल उपाध्याय । 22 सितम्बर 2024 । टोक्यो 


Re: इतवारी पहेली: 2024/09/15



On Sun, Sep 15, 2024 at 10:30 PM Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> wrote:

इतवारी पहेली:


उगती नहीं है #%# ## # 

कृष्ण थे बच्चे #%### # 


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 15 सितम्बर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 15 सितम्बर 2024 । रतलाम 




इतवारी पहेली: 2024/09/22


इतवारी पहेली:


कविगणों का पेट भर ## ## #

बेटों का पेट भरे पिता की #### #


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 29 सितम्बर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 22 सितम्बर 2024 । टोक्यो 




वह मुझसे प्यार करती है

वह मुझसे प्यार करती है 

यह सबकी निगाह कहती है 

दो दिन की जान-पहचान 

और ऐसे बात करती है? 

इतनी बात करती है?

इतने फ़ोटो लेती है?

उसी को आँख ढूँढती है 

उसी का ख़याल रखती है

पानी भी साथ रखती है 

नमकीन निकाल देती है 

ऐसा भी क्या है 

जो उससे चिपकी रहती है


वह मुझसे प्यार करती है

और मुझसे कहते डरती है 


राहुल उपाध्याय । 21 सितम्बर 2024 । टोक्यो 




Friday, September 20, 2024

बराबरी

साइकिल 

आज भी चलाता है लड़का 

और बैठती है डंडे पर लड़की 


लड़के की शर्ट पर 

आज भी बटन

टाँकती है लड़की 


लड़का छोड़ने जाता है 

लड़की को उसके घर


बराबरी 

न थी

न है

न होगी


राहुल उपाध्याय । 21 सितम्बर 2024 । टोक्यो



Thursday, September 19, 2024

घड़ियाली आँसू

सारी कवयित्रियाँ खोखली

एवं सामन्तवादी हैं

खाना खाने के बाद

अपने झूठे बर्तन

ख़ुद नहीं धोतीं

किसी और से

धुलवाती हैं

और फिर 

घड़ियाली आँसू 

बहाती हैं कि

जो कारीगर

जिस इमारत को खड़ा करते हैं

उसमें रह नहीं सकते


राहुल उपाध्याय । 20 सितम्बर 2024 । ओसाका, जापान 




Sunday, September 15, 2024

इतवारी पहेली: 2024/09/15


इतवारी पहेली:


उगती नहीं है #%# ## # 

कृष्ण थे बच्चे #%### # 


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 

सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 15 सितम्बर 2024 को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 15 सितम्बर 2024 । रतलाम 




ये जीवन क्या है

ये जीवन क्या है

जीवन नहीं है

बमबारी के बीच 

कोई बचता नहीं है 


न कोई ग़लत है 

न कोई सही है 

झगड़े-फ़साद की

जड़ यही है


तुमने भी देखा

हमने भी देखा

सरहदों के झगड़ों का

सर ही नहीं है


बच्चों के लब पे

ग़म का असर है 

मुस्कान-वुस्कान

कुछ भी नहीं है 


ये दुनिया है दुनिया 

सदा से है ऐसी

किसी को किसी की

ज़रूरत नहीं है 


तरीक़े बदल गए

नफ़रत है वैसी

किसी को किसी से 

मुहब्बत नहीं है 


राहुल उपाध्याय । 15 सितम्बर 2024 । उज्जैन से। रतलाम जाते हुए 




Saturday, September 14, 2024

हम भी चोर, ये भी चोर

हम भी चोर, वे भी चोर

ऐसी-कैसी लगी ये होड़ 


हम तो समझे वे हैं संत

लोक-लाज का उनको भय

कीचड़-वीचड़ रोज़ उछले

लोकतंत्र की ये कैसी दौड़ 


गोली खाई, अजेय बन गए

डिबेट हुआ, धूल खा गए

पोल पे पोल दोनों हारे

रोज़-रोज़ कोई नया है मोड़ 


होगा चुनाव, आएगा कोई 

किसी बात पे हारेगा कोई 

हैं चुनाव के ये गोरख धंधे

यही है सार, यही निचोड़ 


जो भी जीते, भारत जीते

देश हित में सारे नतीजे 

एक तरफ़ है कमला नारी

दूजी तरफ़ है ट्रम्प बेजोड़ 


राहुल उपाध्याय । 15 सितम्बर 2024 । उज्जैन