जो ढूँढती थी मुझे फ़ेसबुक पर
अब देखती नहीं है स्टेटस भी
कैसे कोई
साथ-साथ
चलते-चलते साथ छोड़ दे
भीड़ में गुम हो
भीड़ में अकेला छोड़ दे
चाहा था जिसे दिल से
उससे आज दिल जल रहा
मैं शिकायत परस्त नहीं
पर उससे शिकायत कर रहा
आईं-गईं हज़ार और
आएँगी हज़ार और
पर इससे निराश होऊँ
तो बात कुछ आगे बढ़े
जाने क्या है इस हूर में
कि उदास हूँ
पर निराश नहीं
राहुल उपाध्याय । 4 फ़रवरी 2025 । सिएटल
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