काँटे सारे ग़ायब हैं
बस फूल ही फूल हैं
और सबसे बड़ा फूल तो मैं हूँ
कब कितना बजा है
कुछ समझ नहीं आता है
पाँच और दो आठ दिखते हैं
एक और सात में कोई फ़र्क़ नहीं
अलेक्सा भी
सवा आठ, साढ़े आठ
बताती नहीं है
ये कैसी दुनिया है
जिसमें अंक ही अंक हैं
और अंक में भरता कोई नहीं है
राहुल उपाध्याय । 15 फ़रवरी 2025 । सिएटल
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