Saturday, February 15, 2025

भगवान भरोसे- समीक्षा

शिलादित्य बोरा द्वारा निर्देशित फिल्म भगवान भरोसे एक बहुत अच्छी फिल्म है। हर चैप्टर सोचने पर मजबूर करता है। 


दुख है तो इस बात का कि जिन्हें यह फिल्म पसन्द आई वे भी इसके सन्देश से कन्नी काट जाते हैं। भला हो मायाजाल का कि पैसे का मोह इतना बलवान है कि लाख चाहकर भी लोग भगवान भरोसे नहीं रह सकते हैं एवं देर-सबेर अक़्ल आ ही जाती है। लेकिन कुत्ते की पूँछ जैसे सीधी नहीं होती वैसे ही ये भी मूलभूत परिवर्तन नहीं ला पाते हैं। 


जितनी भी समस्याओं पर इस फ़िल्म में प्रकाश डाला गया है वे अनवरत चलती जाएँगी। और ये समस्याएँ किसी देश-काल की सीमाओं से बँधी नहीं हैं। और मज़े की बात यह है कि ये समस्याएँ समस्याएँ होकर भी हमें समस्याएँ नहीं लगती हैं। हम कहते हैं यही तो जीवन है। प्रथा न हो तो जीवन में रखा ही क्या है। जीवन खोखला हो जाएगा। हमारे साथ उतना बुरा नहीं होता है जितना इस फिल्म में होता है तो हमें प्रथाओं से कोई नुक़सान होता नहीं दिखता है। लेकिन हम यह नहीं जानते हैं कि हमारे व्यवहार से कितने लोग दिग्भ्रमित हो जाते हैं एवं अपना नुक़सान कर बैठते हैं। 


फ़िल्म बाल कलाकार केन्द्रित है लेकिन फिर भी विनय पाठक का अभिनय अपनी छाप छोड़ जाता है। 


राहुल उपाध्याय । 15 फ़रवरी 2025 । सिएटल 



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