Friday, October 26, 2007

करवा चौथ

भोली बहू से कहती हैं सास तुम से बंधी है बेटे की सांस व्रत करो सुबह से शाम तक पानी का भी न लो नाम तक जो नहीं हैं इससे सहमत कहती हैं और इसे सह मत करवा चौथ का जो गुणगान करें कुछ इसकी महिमा तो बखान करें कुछ हमारे सवालात हैं उनका तो समाधान करें डाँक्टर कहे डाँयटिशियन कहे तरह-तरह के सलाहकार कहे स्वस्थ जीवन के लिए तंदरुस्त तन के लिए पानी पियो, पानी पियो रोज दस ग्लास पानी पियो ये कैसा अत्याचार है? पानी पीने से इंकार है! किया जो अगर जल ग्रहण लग जाएगा पति को ग्रहण? पानी अगर जो पी लिया पति को होगा पीलिया? गलती से अगर पानी पिया खतरे से घिर जाएंगा पिया? गले के नीचे उतर गया जो जल पति का कारोबार जाएंगा जल? ये वक्त नया ज़माना नया वो ज़माना गुज़र गया जब हम-तुम अनजान थे और चाँद-सूरज भगवान थे ये व्यर्थ के चौंचले हैं रुढ़ियों के घोंसले एक दिन ढह जाएंगे वक्त के साथ बह जाएंगे सिंदूर-मंगलसूत्र के साथ ये भी कहीं खो जाएंगे आधी समस्या तब हल हुई जब पर्दा प्रथा खत्म हुई अब प्रथाओं से पर्दा उठाएंगे मिलकर हम आवाज उठाएंगे करवा चौथ का जो गुणगान करें कुछ इसकी महिमा तो बखान करें कुछ हमारे सवालात हैं उनका तो समाधान करें 25 अक्टूबर 2007

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6 comments:

Ashish Maharishi said...

इस कविता में कई सवाल उठाएं गएँ है.. बढ़िया प्रयास है

http://bolhalla.blogspot.com

हरिराम said...

अच्छी प्रस्तुति!

काश! कि सुबह चार बजे उठकर देखा होता? क्या क्या खान, पान, जलपान चल रहा था?

Udan Tashtari said...

सार्थक रचना.

आलोक said...

अच्छी और मज़ेदार तुकबंदी है, और दिलचस्प संदेश भी।

Anonymous said...

bahut sahi likha hai aapne!!!!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

pyari si rachna...:)
shubhkamnayen...