Saturday, August 16, 2008

हुस्न और इश्क़ का असर हो गया

हुस्न और इश्क़ का असर हो गया
आदमी था काम का सिफ़र हो गया

हँस-हँस के लूटा हर बेब ने मुझे
आप को गिला कि मैं बेबहर हो गया

लिखता हूँ लिखता ही रहूँगा सदा
सुन-सुन के गालियाँ निडर हो गया

ख़ुद की कहता हूँ ख़ुदा की नहीं
जो मार के इन्सां अमर हो गया

नन्हा सलोना सा जीवन था मेरा
बढ़ते बढ़ते दीगर हो गया

फ़ोर्ट वॉर्डेन,
16 अगस्त २००८
============
सिफ़र = zero, शून्य
गिला = शिकायत
बेब = babe
बेबहर = बिना बहर का, without meter
दीगर = अन्य, another, दूसरा

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


2 comments:

Anil Pusadkar said...

bahut sunder,badhai aapko

Yogi said...

This one is good Rahul ji.

Bahut khoobsoorat !!