Friday, August 22, 2008

मेरा दिल अब भी धड़कता है

दिल दिल है कोई शीशा तो नहीं कि चोट लगी और टूट गया
प्यार प्यार है कोई दाग नहीं कि हाथ मला और छूट गया

सपनें सपनें हैं कोई फूल नहीं कि वक़्त ढला और बिखर गए
दोस्त दोस्त हैं कोई स्टेशन तो नहीं कि ट्रेन चली और बिछड़ गए

हम हम हैं कोई किरदार नहीं कि पन्नों में ही दब के रह गए
हम प्रेमी हैं कोई गुनहगार नहीं कि कारावास में ही मर गए

हमें प्यार हुआ और हमने प्यार किया
सिर्फ़ प्यार, प्यार और प्यार किया

माना कि हम शीरीं-फ़रहाद नहीं
पर किया किसी का घर बर्बाद नहीं
सब कुछ किया लेकिन विवाह नहीं
ताकि रिश्ता हो कोई तबाह नहीं

वो पावन ज्योत अब भी जलती है
जिसे मन-मंदिर में तुम जला गए
ये हवाएँ अब भी वो गीत गाती हैं
जिसे जाते वक़्त तुम गुनगुना गए

वो निर्मल नदी अभी भी बहती है
जिसमें प्रेम रस तुम बरसा गए
वो वादी अभी भी महकती है
जहाँ तुम प्रेम की बेल लगा गए

मेरा दिल अब भी धड़कता है
तुम रीत ही कुछ ऐसी चला गए

सिएटल,
22 अगस्त 2008

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5 comments:

admin said...

सरल शब्दों में आपनी खूबसूरत गजलें कही हैं, बधाई स्वीकारें।

Anil Pusadkar said...

sunder

Anwar Qureshi said...

बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ..शुक्रिया ..

Anonymous said...

छू गई दिल को...

अनूप शुक्ल said...

धड़कता रहे दिल ऐसेइच!