Tuesday, August 5, 2008

आ चल के तुझे, मैं ले के चलूँ

आ चल के तुझे,
मैं ले के चलूँ
इक ऐसे गगन के तले
जहाँ वेब भी न हो
मैसेंजर भी न हो
बस प्यार ही प्यार पले
इक ऐसे गगन के तले

सूरज की पहली किरण से
इंटरनेट दिमाग न खाए
चंदा की किरण से धुल कर
टेक्स्ट मैसेज न आते जाए
कोई पास बैठे
कोई घर आ के मिले
स्क्रीन पे न कट-पेस्ट चले
जहाँ वेब भी न हो …

जहाँ दूर नज़र दौड़ आए
कम्प्यूटर नज़र न आए
जहाँ रंग बिरंगे पोस्टकार्ड
आशा का संदेसा लाएं
हाथों से लिखें
होंठों से चूमें
ख़त आते हो ऐसे भले
जहाँ वेब भी न हो ...

सिएटल,
5 अगस्त 2008
(किशोर कुमार से क्षमायाचना सहित)
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वेब = web
मैसेंजर
= instant messenger
इंटरनेट= internet
टेक्स्ट मैसेज = text message
स्क्रीन = screen
कट-पेस्ट = cut-paste
कम्प्यूटर = computer

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3 comments:

रवि रतलामी said...

बढ़िया पैरोडी है.

इससे पता चला कि किशोर दा भी खूब और बढ़िया लिखते थे!

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut jabardst perodi hai. padh kar aanand aa gaiyaa.

Nitish Raj said...

क्या पैरॉडी बनाई है। खूब बंधू खूब..।