कभी-कभी दुआओं का जवाब आता है
और कुछ इस तरह कि बेहिसाब आता है
ढूँढते रहते हैं रात-दिन जो फुरसत के रात-दिन
हो जाते हैं पस्त जब पर्चा रंग-ए-गुलाब आता है (पर्चा रंग-ए-गुलाब = pink slip, नौकरी खत्म का आदेश )
यूँ तो तेल निकालो तो तेल निकलता नहीं है
और अब निकला है तो ऐसे जैसे सैलाब आता है (सैलाब = बाढ़, flood)
चश्मा बदल-बदल कर कई बार देखा
हर बार नज़रों से दूर नज़र सराब आता है (सराब = मरीचिका, mirage)
जा के विदेश जाके पूत डालते हो डेरा (जाके = जिसके)
वैसे मुल्क में कहाँ आफ़ताब आता है (आफ़ताब = सूरज)
कुकर पे सीटी न जब तक लगी हो (कुकर = pressure cooker)
दाल में भी कहाँ इंकलाब आता है
पराए भी अपनों की तरह पेश आते हैं 'राहुल'
वक़्त कभी-कभी ऐसा भी खराब आता है
सिएटल | 425-898-9325
4 जून 2010
Friday, June 4, 2010
कभी-कभी दुआओं का जवाब आता है
Posted by Rahul Upadhyaya at 2:23 AM
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4 comments:
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है...
आईये जानें ..... मन ही मंदिर है !
आचार्य जी
हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हुई, बेहतरीन शब्द रचना।
Bahut hi badhia raahul ji....
kamaal kii gazal kahi hai aapne...
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