जब मैं था एक छोटा सा बच्चा
क्या पता था क्या झूठा-सच्चा
जैसे जैसे मैं होश में आया
धीरे धीरे सब समझ में आया
क्रांतिकारी बन के क्या है करना?
इससे तो अच्छा ठाठ से रहना
भगत-आज़ाद सब दिए गए मारे
आज लगते हैं सिर्फ़ उनके नारे
जन समाज में कोई सुधार नहीं है
सब कहते हैं अच्छी सरकार नहीं है
माँ ने कहा तुम खूब मेहनत करना
जा के विदेश नाम रोशन करना
यहाँ पे ढंग का कोई काम नहीं है
बिन रिश्वत होता कोई काम नहीं है
टाटा, बिड़ला और अम्बानी
बनना हो तो करो बेईमानी
रोज़-रोज़ चोरी बेईमानी करना
इससे तो अच्छा शपथ ले कर कहना -
अमरीकी झंडे की मैं लाज रखूँगा
वक्त आने पर शस्त्र हाथ में लूँगा
इनकी फ़ौज में दाखिल हो कर
मातृभूमि पर बम डाल मैं दूँगा
धर्म हेतु अर्जुन ने परिजन मारे
स्वार्थ हेतु मैं जड़ें काट भी दूँगा
सिएटल | 425-898-9325
18 जून 2010
Friday, June 18, 2010
स्वार्थ हेतु मैं जड़ें काट भी दूँगा
Posted by Rahul Upadhyaya at 1:38 PM
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Labels: 24 वर्ष का लेखा-जोखा, intense, TG
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2 comments:
आप इस बार कुछ भ्रमित हैं..
rachna achchi hai bas thodi jyada nakaratmak hai...par sach bhi yahi hai...
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