Friday, June 25, 2010

आँख का पानी

मैं कवि हूँ
और कविता पेल रहा हूँ
आँख का पानी देख के
कविता सोच रहा हूँ


सोच रहा हूँ
क्या-क्या लिखूँ
जिससे सबकी वाह-पाह पाऊँ?
करूणा के कुछ चित्र गढ़ूँ
या एक श्वेत-श्याम चित्र जोड़ूँ?


जब भी कोई रोता देखूँ
आशा बढ़ती जाए
हे ईश्वर इसे कुछ और रुलाना
ताकि भाषा को बल मिल जाए
दो चार कुछ बंद बने
और एक फ़ड़कता गीत बन जाए
झूम-झूम के गाउँ उसे मैं
और तालियों में खो जाउँ


सब ने दु:ख से खूब कमाया
मैं भी कमाता जाउँ
जब भी कहीँ दु:ख दिखे
फ़ौरन कविता में जुट जाऊँ


बस एक बार कुछ सार्थक लिखूँ
बस एक बार लिखूँ कुछ धाँसू
जिसको पढ़ के आ जाए
सबकी आँखों में आँसू


सिएटल । 425-898-9325
25 जून 2010

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1 comments:

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

सब ने दु:ख से खूब कमाया
मैं भी कमाता जाउँ
जब भी कहीँ दु:ख दिखे
फ़ौरन कविता में जुट जाऊँ

क्या बात है ... एकदम सच ...