हवा तो हवा है
हर जगह वो चलती है
वो हमारी-तुम्हारी सांस नहीं
जो सरहदों में सिसकती है
ईश्वर की दृष्टि
है समान सब पर
जंगल और शहर में नहीं
भेद वो करती है
यूँ निकालो तेल
तो तेल निकलता नहीं है
और अब निकली है धार
तो रोके न रूकती है
मरने को तो रोज़
मरते हैं लोग
लेकिन उड़नेवालों के मरने पे
दुनिया कुछ ज्यादा ही बिलखती है
आओ चलो
कुछ नारे लगाए
खुश रहने से कहाँ
खुशी पनपती है
सिएटल | 425-898-9325
2 जून 2010
Wednesday, June 2, 2010
हवा तो हवा है
Posted by Rahul Upadhyaya at 7:53 AM
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3 comments:
bahut khubsurat kavita
dhanyawad padwane ke liye
मरने को तो रोज़
मरते हैं लोग
लेकिन उड़नेवालों के मरने पे
दुनिया कुछ ज्यादा ही बिलखती है
बढ़िया व्यंग है.....सुन्दर अभिव्यक्ति
adbhut sundar rachna...vyangpoorn
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