Wednesday, June 2, 2010

हवा तो हवा है

हवा तो हवा है
हर जगह वो चलती है
वो हमारी-तुम्हारी सांस नहीं
जो सरहदों में सिसकती है


ईश्वर की दृष्टि
है समान सब पर
जंगल और शहर में नहीं
भेद वो करती है


यूँ निकालो तेल
तो तेल निकलता नहीं है
और अब निकली है धार
तो रोके न रूकती है


मरने को तो रोज़ 
मरते हैं लोग
लेकिन उड़नेवालों के मरने पे
दुनिया कुछ ज्यादा ही बिलखती है


आओ चलो
कुछ नारे लगाए
खुश रहने से कहाँ
खुशी पनपती है


सिएटल | 425-898-9325
2 जून 2010

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3 comments:

Shekhar Kumawat said...

bahut khubsurat kavita

dhanyawad padwane ke liye

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मरने को तो रोज़
मरते हैं लोग
लेकिन उड़नेवालों के मरने पे
दुनिया कुछ ज्यादा ही बिलखती है

बढ़िया व्यंग है.....सुन्दर अभिव्यक्ति

दिलीप said...

adbhut sundar rachna...vyangpoorn