Saturday, March 31, 2018

हीरा जन्म अमोल है

तू कान लगाकर मेरे दिल की धड़कन सुने
तेरे गैसूओं की ख़ुशबू मेरी साँसों में बसे
तो
सूकून है
चैन है
शांति है
वरना
वीराने में भी
अशांति है

तेरी शाम मेरी सुबह से मिले
तेरी रात मेरे दिन से
मैं रहूँ रहूँ
मेरी रूह तेरे साथ चले
तो समझूँगा
कि जीवन जिया था मैंने
नाहक ही नहीं सम्बन्धों को सीया था मैंने

ख़ाली हाथ आया हूँ
ख़ाली हाथ जाऊँगा
लेकिन इतना संतोष है कि
इन्हीं हाथों से
तेरी ज़ुल्फ़ों को सहलाया है मैंने
उड़ते दुपट्टे को थामा है मैंने
रस्ते चलते ऑटो को रोका है मैंने
शब्दों में तेरे अक्स को उतारा है मैंने

राम नाम तो जपा नहीं 
ढाई आखर आख़िर पढ़ ही गया
हीरा जन्म अमोल है
अमोल की क़ीमत वसूल कर ही गया

Friday, March 30, 2018

बाईक, मोबाईल और कामवाली बाई

बाईक, मोबाईल और कामवाली बाई
कब कहेंगे हम इनको बाई-बाई

तीनों के मुँह हैं सुरसा सी खाई
जम के जिन्होंने पाई-पाई खाई
फिर भी कभी पूर्ति पाई

कड़ी मेहनत की गाढ़ी कमाई
जब देखो लगी कम ही आई

एक बात हमें समझ आई
बाल बढ़े तो हम ढूँढे नाई
करे उनकी कटाई-छँटाई
और बढ़े तो दुखी हुई जाईं

मानव जात ही ऐसी जात है भाई
जिसे सर्दी-गर्मी कछु नहीं भाई
हो तो दुखी, हो तो दुखी
चिता तक चिंता से मुक्ति पाई

31 मार्च 2018

Thursday, March 29, 2018

This Good Friday

This Good Friday
Think of a Good Hriday
Thank a Good Hriday
Be a Good Hriday 

Wednesday, March 28, 2018

काश तुम होती

काश तुम होती
मेरे पाठ्यक्रम में 
ताकि नम्बर चाहे अच्छे मिल जाते
लेकिन अंतत: तुम्हें मैं भूल ही जाता

काश तुम होती
आचार संहिता में 
जो लगती तो अच्छी
लेकिन तुम्हें मैं आत्मसात कर पाता

काश तुम होती
सिगरेट पैकेट की चेतावनी
जिसे पढ़कर भी समझने की
मैं कोशिश करता

काश तुम होती
ऐप डाउनलोड करते वक़्त खुलती
नियमों और शर्तों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त 
जिसे बना पढ़े मैं हामी भरकर 
आगे बढ़ जाता

काश तुम होती
वह सब
जिनका मेरे जीवन में 
कोई मूल्य होता

लेकिन
तुम हो कि
हो हवा, पानी, बरसात, चाँद 
और जाने क्या-क्या कुछ
जिनका होना होना
मेरे हाथ में नहीं 

29 मार्च 2018

Tuesday, March 27, 2018

ज़िन्दगी इतनी बुरी भी नहीं है

समन्दर चाहे
कि वह कविता लिखे
जिसके लिए लिखे
वह उसे पढ़े 

लेकिन कैसे?
शब्द विचित्र हैं
कई मायने रखते हैं
दो शब्द जुड़ जाए
तो मायने गुणात्मक हो जाते हैं

समन्दर चाहे
कि वह गीत गाए
जिसके लिए गाए
वह उसे सुने

लेकिन कैसे?
सारे गीत एक से हैं
अरिजित सिंह से लेकर किशोर तक
रहमान से लेकर ख़य्याम तक
भाव सीमित हैं

समन्दर चाहे
कि वह जमकर रोए
खारेपन में ख़ुद को डूबोए

तीन में से एक में सफलता
ज़िन्दगी इतनी बुरी भी नहीं है 

28 मार्च 2018

Monday, March 26, 2018

आज फिर

आज फिर 
किसी ने चाहा मुझे
पूरे मन से

लेकिन 
माँगा नहीं 
अपने लिए

कई बार फूल
जहाँ हैं वहीं
अच्छे लगते हैं  

27 मार्च 2018
उदयपुर 

Sunday, March 25, 2018

महज़ बातों ही से क्या मन की बात होती है

महज़ बातों ही से क्या
मन की बात होती है
हवा दो तो जवाँ 
आग राख होती है

आज भी याद है वो
वो रात फूलों की
दिखा जो चाँद कभी
ख़ुशबू साथ होती है

तराने जो भी सुने
नग़मे जो भी चुने
उन्हें गाने की तबियत
हज़ार होती है

तू ख़ुश रहे
तू सदा होके आबाद रहे
इन्हीं दुआओं के संग
सुबह-शाम होती है

वफ़ाएँ छोड़ भी दीं
जफ़ाएँ ओढ़ भी लीं
रूह तो रूह है 'राहुल'
किसकी जान होती है