तुम थे तो
ज़माना रोशन था
तुम्हारे गीतों का
रिमझिम सावन था
तुम्हारे कवित्त के
गुणों से हम अवगत थे
तुम्हारे गुण गाते
हम नहीं थकते थे
लेकिन
ऐसा न था
लेकिन ऐसा न था
फ़क़त हम आज
यह सब कहते हैं
जब तुम सदा के लिए
कूच कर चुके हो
और
फिर आज के बाद कुछ
कहेंगे भी नहीं
क्या कभी हम कोई
कविता दोहराएँगे
जिसका रचनाकार
साल दो साल नहीं
दस साल जीएगा?
या हम फिर खेमों में बँट जाएँगे?
इधर-उधर की गप्पें लगाएँगे?
और साल में तीन-चार बार
कभी निराला
कभी दिनकर
कभी महादेवी
तो कभी जावेद-गुलज़ार को ही उद्धृत कर पाएँगे?
क्या कभी हम इनसे भी आगे बढ़ पाएँगे?
इनसे उबर पाएँगे?
तुम थे तो ...
(हर किसी बड़े कवि के गुज़रने पर)
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उद्धृत = quote
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