बाईक, मोबाईल और कामवाली बाई
कब कहेंगे हम इनको बाई-बाई
तीनों के मुँह हैं सुरसा सी खाई
जम के जिन्होंने पाई-पाई खाई
फिर भी कभी न पूर्ति पाई
कड़ी मेहनत की गाढ़ी कमाई
जब देखो लगी कम ही आई
एक बात हमें समझ न आई
बाल बढ़े तो हम ढूँढे नाई
करे उनकी कटाई-छँटाई
और न बढ़े तो दुखी हुई जाईं
मानव जात ही ऐसी जात है भाई
जिसे सर्दी-गर्मी कछु नहीं भाई
हो तो दुखी, न हो तो दुखी
चिता तक चिंता से न मुक्ति पाई
31 मार्च 2018
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