Wednesday, September 9, 2009

नौ, नौ, नौ?

नौ, नौ, नौ?
नो, नो, नो!
बस
तीन साल,
तीन महीने,
और तीन दिन और
फिर
विश्व में होगा
एक भयंकर विस्फ़ोट

आएगी प्रलय
और
होगा सबका अंत
कहते हैं
टी-वी पे बैठे विद्वत् जन

अरे! गिनती गिनना अगरचे आवश्यक अवश्य
गूढ़ अर्थ तलाशना उनमें है एक व्यर्थ प्रपंच
कैलेंडरों में तिथियाँ आती-जाती रहीं सर्वदा
लेकिन कैलेंडर देख के कभी कुछ न घटा
न बिजली गिरी, न बरसी घटा
न आए भूकम्प, न उबली धरा
आज तक आए जब-जब संकट यहाँ
इंसा का हाथ मिला सदा हाथ पे धरा

सिएटल 425-898-9325
9 सितम्बर 2009

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3 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया लिखा है .. इसी तरह का एक पोस्‍ट मैने भी कल किया है .. कृपया पढें !!

Nitish Raj said...

पोस्ट पे पोस्ट, सच बात कही आपने।

Anonymous said...

तीन साल, तीन महीने, और तीन दिन गुज़र ही गए नौ, नौ, नौ, के बाद इस साल - आपकी बात सही थी कि "गूढ़ अर्थ तलाशना उनमें है एक व्यर्थ प्रपंच"