नौ, नौ, नौ?
नो, नो, नो!
बस
तीन साल,
तीन महीने,
और तीन दिन और
फिर
विश्व में होगा
एक भयंकर विस्फ़ोट
आएगी प्रलय
और
होगा सबका अंत
कहते हैं
टी-वी पे बैठे विद्वत् जन
अरे! गिनती गिनना अगरचे आवश्यक अवश्य
गूढ़ अर्थ तलाशना उनमें है एक व्यर्थ प्रपंच
कैलेंडरों में तिथियाँ आती-जाती रहीं सर्वदा
लेकिन कैलेंडर देख के कभी कुछ न घटा
न बिजली गिरी, न बरसी घटा
न आए भूकम्प, न उबली धरा
आज तक आए जब-जब संकट यहाँ
इंसा का हाथ मिला सदा हाथ पे धरा
सिएटल 425-898-9325
9 सितम्बर 2009
Wednesday, September 9, 2009
नौ, नौ, नौ?
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:56 PM
आपका क्या कहना है??
3 पाठकों ने टिप्पणी देने के लिए यहां क्लिक किया है। आप भी टिप्पणी दें।
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3 comments:
बहुत बढिया लिखा है .. इसी तरह का एक पोस्ट मैने भी कल किया है .. कृपया पढें !!
पोस्ट पे पोस्ट, सच बात कही आपने।
तीन साल, तीन महीने, और तीन दिन गुज़र ही गए नौ, नौ, नौ, के बाद इस साल - आपकी बात सही थी कि "गूढ़ अर्थ तलाशना उनमें है एक व्यर्थ प्रपंच"
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