तुम्हें भूलना
मैं भूल जाता हूँ अक्सर
और
कर लेता हूँ याद
जब-जब
ढलता है सूरज
जलता है दीपक
उड़ती हैं ज़ुल्फ़ें
खनकती है पायल
हँसते हैं बच्चे
घिरते हैं बादल
सोचता हूँ
एक प्रोग्राम बना लूँ
कैलेंडर में
एक रिमाईंडर लगा दूँ
जो हर दूसरे दिन
तुम्हें भुलाना है
मुझे याद दिला दे
सिएटल 425-898-9325
1 सितम्बर 2009
Tuesday, September 1, 2009
मैं भूल जाता हूँ अक्सर
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:06 PM
आपका क्या कहना है??
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Labels: digital age, intense, March2, MM, new, relationship, TG
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2 comments:
बहुत सुन्दर...
बडी ही गहरी कविता लिखी आपने।
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