Tuesday, September 1, 2009

मैं भूल जाता हूँ अक्सर

तुम्हें भूलना
मैं भूल जाता हूँ अक्सर
और
कर लेता हूँ याद
जब-जब
ढलता है सूरज
जलता है दीपक
उड़ती हैं ज़ुल्फ़ें
खनकती है पायल
हँसते हैं बच्चे
घिरते हैं बादल

सोचता हूँ
एक प्रोग्राम बना लूँ
कैलेंडर में
एक रिमाईंडर लगा दूँ
जो हर दूसरे दिन
तुम्हें भुलाना है
मुझे याद दिला दे

सिएटल 425-898-9325
1 सितम्बर 2009

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2 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत सुन्दर...

Anonymous said...

बडी ही गहरी कविता लिखी आपने।