बागी ---
बागबां ---
बागों ---
गुल ---
ऐसा नहीं
कि गला रूंध गया
या कलम टूट गई
या शब्द नहीं मिलें
बल्कि
मैं यह दिखलाना चाहता हूँ कि
कितने बेमानी हैं शब्द
शब्दों के बिना
जैसे
मैं
तुम्हारे बिना
सिएटल 425-898-9325
13 सितम्बर 2009
Sunday, September 13, 2009
तुम्हारे बिना
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:16 PM
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Labels: intense, new, relationship
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1 comments:
Very Nice Poem.Read my Tmhare beena in my blog.
http://kavyadhara.com/hindi
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