हमसे का भूल हुई जो यह सज़ा हमका मिली
अब तो चारों ही तरफ बंद है दुनिया की गली
जान किसी की भी न लें हमने बस इतना चाहा
माँस से दूर रहे दूध से बचना चाहा
उसका बदला ये मिला, उलटी छुरी हम पे चली
हम पे इलज़ाम यह है गाँव क्यों छोड़ दिया
क्यों बर्बादी ही की काहे न कुछ और किया
हमने विकास किया, बदले में बदनामी मिली
अब तो ईमान धरम की कोई कीमत ही नहीं
जैसे पास आनेवालों की कोई ज़रुरत ही नहीं
ऐसी दुनिया से तो दुनिया तेरी वीरान भली
(मजरूह सुल्तानपुरी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 18 मई 2020 । सिएटल
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