पहले
लावारिस वस्तुओं से ख़तरा था
अब
एक-दूसरे से डर लगता है
डर स्वाभाविक है
डरना हमारे डी-एन-ए में है
लेकिन
हम मिल-जुल कर
विषम परिस्थितियों से लड़े
हमने मिल-जुल कर
खेत-खलिहान बनाएँ
गाँव बसाएँ
कारख़ाने खोले
दुकानें चलाईं
हम
पशुओं से
भिन्न हुए
मिल-जुल कर
अब
जब मेल-जोल ही बन्द है
डर है कि कहीं हम पशु न बन जाए
राहुल उपाध्याय । 27 मई 2020 । सिएटल
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