न्याय यदि कोई एप होता
तो मैं कब का डाउनलोड कर चुका होता
और किसी को न बताता
ताकि किसी और को न मिल सके
किसी को पता लग भी जाता
तो उसे बरगलाता
यह भी कोई एप है?
हज़ारों इसमें ऐब हैं
निहायत ही अंधा है
न बाप
न बेटा
न माँ
न बहन
न प्रधान मंत्री
न चपरासी
न अमीर
न ग़रीब
किसी में कोई फ़र्क़ ही नहीं
सबको बराबर समझता है
सबको एक ही न्याय
भला ऐसा भी कहीं होता है
किसे चाहिए ऐसा न्याय?
और इसीलिए
आंदोलन होते हैं
होते रहते हैं
सबकी रोज़ी-रोटी चलती है
कोई ख़बर बनता है
कोई ख़बर बनाता है
कोई कविता लिखता है
कोई लेख
कोई फ़ोटो खींचता है
कोई चित्र बनाता है
उस न्याय की तलाश में
जो किसी को नहीं चाहिए
राहुल उपाध्याय । 31 मई 2020 । सिएटल
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