जो नहीं होता था
हो रहा है
एक-दूसरे से
एक दूसरे को
ख़तरा हो रहा है
पहले भी
किसे फ़ुरसत थी
किसी से मिलने की
ग़लती से सामना हो जाने पर
बस नाटक करते थे
गले लगाने का
कोई कहता है कि
हम तो उकता गए हैं
घर बैठे-बैठे
एक यही थे
जो चाहते थे कि
मिल जाए उन्हें सब
घर बैठे-बैठे
अमेज़ॉन प्राइम
नेटफ्लिक्स
उबर ईट्स
और ज़ूम
आज की
इजाद नहीं है
भोले हैं लोग
भूलने लगे हैं
रहता कुछ
याद नहीं है
जो चाहा था
वही हो रहा है
राहुल उपाध्याय । 1 जून 2020 । सिएटल
1 comments:
बहुत बढ़िया...
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