जग जाता है जग
चिता की गर्म आँच से
देह का कोई असर नहीं
चाहे भरी हो गर्म साँस से
आँसू पूछते थे उसे
पोंछने वाले किधर गए?
क्या कहता वो उनसे
जो रूके नहीं और निकल गए?
हर तरफ़ है शुभचिन्तक
हर तरफ़ उमड़ रहा प्यार है
ज़िन्दगी से जो हार गया
हार पा रहा उपहार है
यही हमारी रीत है
यही हमारा रिवाज है
जीते जी जो पसन्द नहीं
मरने पर रोते दहाड़ मार है
आओ रहें हम शांत क्यूँ
हम भी स्टेटस लगाएँगे
दो-चार दिन की बात है
फिर कुत्ते-बिल्ली लगाएँगे
राहुल उपाध्याय । 15 जून 2020 । सिएटल
1 comments:
हृदय स्पर्शी सृजन .
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