इतिहास साक्षी है कि
जब भी हमने कुछ धारा है
उसे उतारने में हम अक्षम रहे हैं
चाहे वो
जूते-चप्पल हों
शर्ट हो
पेंट हो
चश्मा हो
या अँगूठी हो
अब
ढाई अंगुल के मास्क के भी
दिन आ गए हैं
चढ़ा है
तो आसानी से उतरेगा नहीं
जिस गाँव में बिजली के अभाव में
लोग ज़िन्दगी गुज़ार देते थे
बिना पंखे के
आज
बिना कूलर के
लोगों को नींद नहीं आती है
बिना बाईक
अपंग
बिना फ़ोन
गँवार
बिना व्हाट्सेप
अकेले
बिना फ़ेसबुक
बेजान
अब
जेब में रूमाल के साथ
हेण्ड सेनिटाईज़र भी
अनिवार्य हो जाएगा
कहाँ तो रोटी-कपड़ा-मकान जुटाने में
कमर टूट जाती थी
अब
शैम्पू
डीओडोरेंट
इंटरनेट
सब अति आवश्यक है
हम भूल जाते हैं कि
निर्भरता ही नैनों में है नीर भरती
और हम उन्हें समृद्धि का मापदण्ड मान बैठते हैं
सही मायनों में देखिए तो है बस वो ही आज़ाद
जो किसी बात पर भी किसी का नहीं मोहताज
राहुल उपाध्याय । 11 जून 2020 । सिएटल
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