नए जूतों को मैं
दरवाज़े पर नहीं
छोड़ता हूँ
उतार कर
क़ायदे से
हाथ में उठाकर
झाड़-पौछ कर
सम्हाल कर रखता हूँ
बाहर बारिश में भीग गए तो?
धूल-मिट्टी-कचरे में सन गए तो?
दस साल पुराने जूते
यूँही पटक दिया करता था
हज़ारों मील मेरे साथ रहे हैं
मुझे छोड़कर जाएँगे कहाँ
और कोई और उन्हें लेगा भी क्यों
घर के बाहर
पड़े-पड़े
वे राह तकते थे
दरवाज़े की ओर
टकटकी लगाए रहते थे
कब खुलेगा
और कब उन्हें मैं
अपने साथ ले चलूँगा
किसी बाग़ में
किसी उपवन में
किसी झील
किसी झरने पर
वे जानते थे कि
घर से थोड़ी दूर जाते ही
जहाँ नेटवर्क अच्छा होगा
वहाँ से मैं अपनी माँ से बात करूँगा
कोई ज़्यादा लम्बी नहीं
बस कैसी हो?-मैं अच्छा हूँ-सब ठीक?-रखूँ?
मेरे सुख-दुख के साथी थे
पैडमैन साथ देखी
आँखों से बहुत दूरी थी उनकी
और अंधेरा भी
पर शायद समझ जाते थे
कि कुछ तो गड़बड़ है
तभी तो एक पाँव
एक के उपर है
वे
यह भी जानते थे
कि मैं कब किस से मिला
और किस से एक अरसा हुआ नहीं मिला
अभी चार ही दिन हुए हैं
नए जूतों को पहने
धीरे-धीरे
ये भी मुझे
जानने
पहचानने लगेंगे
पुराने जूते
अब अंदर आ गए हैं
कोई क्रिया कर्म तो इनका होता नहीं
फेंके मुझसे जाते नहीं
क्या पता एक दिन काम आ जाए
जब जाना हो किसी कीचड़ में
राहुल उपाध्याय । 8 जून 2020 । सिएटल
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