लो बीमारी
दो बीमारी
है बस यही पहचान हमारी
अलग-थलग हैं
कटे-कटे से
कहने को जात इंसान हमारी
न आँखों में चमक
न होंठों पे हँसी है
दबी-छुपी है मुस्कान हमारी
कोई घूरे हमें
कोई नज़रें फेरे
जैसे हो सूरत हैवान हमारी
न हम इसके
न ये हमारी
साँसें हैं मेहमान हमारी
राहुल उपाध्याय । 6 जून 2020 । सिएटल
2 comments:
बहुत खूब
वाह!बहुत खूब!
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