देख रहा हूँ
कि तुमने वह सब उतार दिए हैं
जो तुमने मुझसे कभी माँगे थे
हाथ के कंगन
कान की बाली
गले की माला
लेकिन
यह बात गले नहीं उतरती
कि तुम मुझसे उबर चुकी हो
अभी
कल ही की तो बात है
तुम घबरा रही थी
कि कोई हमें
देख न ले
सुन न ले
समझ न ले
यह डर
वह नहीं तो क्या है?
दोस्त भी भला कभी डरते हैं किसी से?
राहुल उपाध्याय । 22 जून 2020 । सिएटल
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