महज़ बातों ही से क्या मन की बात होती है
हवा न दो तो जवाँ आग राख होती है
आज भी याद है वो, वो रात फूलों की
दिखा जो चाँद कभी ख़ुशबू साथ होती है
तराने जो भी सुने, नग़मे जो भी चुने
उन्हें गाने की तबियत हज़ार होती है
तू ख़ुश रहे, तू सदा होके आबाद रहे
इन्हीं दुआओं के संग सुबह-शाम होती है
वफ़ाएँ छोड़ भी दीं, जफ़ाएँ ओढ़ भी लीं
रूह तो रूह ही है, किसकी जान होती है
राहुल उपाध्याय | 25 मार्च 2018 । सिएटल
4 comments:
वाह
बहुत सुन्दर
सुन्दर काव्य
लाजवाब ,बढ़िया
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