कितने नादां है लोग
जो आत्महत्या को घिनौना क़रार देते हैं
आत्महत्या एक जुर्म है
कि आड़ में
न जाने क्या-क्या कह जाते हैं
इन्हें
सहानुभूति क्या होती है
नहीं मालूम
क्या करे कोई इन्सान
जब हर कोई भाषण
देने को तैयार हो
इतने दुखी क्यों हो?
कौन सा क़हर आ पड़ा है?
मुझे देखो
मैंने कैसे संघर्षों का सामना किया
सर उठा कर जी रहा हूँ
तलाक़ हो गया?
तो किसका नहीं होता है?
शीला को देखो
श्याम को देखो
सब मस्ती से जी रहे हैं
शादी नहीं हो रही?
कितने कुँवारे कितने बड़े-बड़े काम कर रहे हैं
फ़ेल हो गए?
ये लो, अरे मैं खुद नवीं में फ़ेल हुआ हूँ
ऐसी कौन सी बड़ी बात हो गई?
देखो आज मैं कितना ख़ुश हूँ
बंधु! गीता में लिखा है
कर्म किए जा
फल की इच्छा मत रख
थोड़ा जज़्बा रख
यह क्या कायर और बुज़दिल बना घूम रहा है
मर्द बन
रीढ़ की हड्डी दिखा
कितने नादां हैं लोग
यह भी नहीं जानते
कि वे मदद नहीं
एक धक्का और दे रहे हैं
कगार से कूदने पर
विवश होने के लिए
राहुल उपाध्याय । 14 जून 2020 । सिएटल
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