इंसान
कभी गाय है
तो कभी शेर
कभी कोल्हू का बैल
तो कभी गधा
कभी घोड़े सा फुर्तीला
तो कभी चींटी की चाल चलता
कभी अजगर सा सोता
तो कभी हाथी सा खाता
कभी दुम हिलाता कुत्ता
तो कभी भीगी बिल्ली
कभी शरारती बंदर
तो कभी आस्तीन का सांप
कभी भेड़
तो कभी ख़ूँख़ार भेड़िया
और
उस दिन तो हद ही हो गई
कोई कहने लगा
मक्खी नहीं
मधुमक्खी बनो
शहद बनाओ
मिठास लाओ
ये कैसी ज़बरदस्ती है
इंसान को
इंसान क्यों नहीं रहने देते?
और ऊपर से ताना भी
कि ज़्यादा मत बनो!
राहुल उपाध्याय । 29 जून 2020 । सिएटल
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