दर्द मिटे दवा ज़हर बने
भूख मिटे ज़हर आहार
मन ऐसा बावला
करता जाए प्यार
चादर भी एक बोझ है
हो जाए जो भोर
कहे कविवर आप भी
चल दो घर की ओर
रहे कोई जो ख़ुश सदा
थामे न कोई हाथ
जो दुख के दुखड़े रोए
पाए सबका साथ
मीरा जिससे प्रेम करे
है पत्थर न कछु और
मैं ही ऐसा बावला
दरियादिल घनघोर
फूल भी काँटा रखे
खुद की हिफ़ाज़त होय
राहुल तू क्यूँ ना करे
ढाल की जुगात कोय
राहुल उपाध्याय । 9 जून 2020 । सिएटल
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