कोरोना हूँ
सारी दुनिया भर का रोना-घोना हूँ
घर-बार नहीं, संसार नहीं
मुझसे किसी को प्यार नहीं
उस पार किसी से
मिलने का इकरार नहीं
टूटा फूटा भटका हुआ खिलौना हूँ
ग़रीबी कहीं, भूखमरी कहीं,
बढ़ रही बेरोज़गारी कहीं
है रोग इधर है रोग उधर
पर है कहीं उपचार नहीं
दुनिया मैं सारे रोगों में, सारे रोगों में बौना हूँ
(शैलेन्द्र से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 7 जून 2020 । सिएटल
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