हिन्दी फिल्म गीतों से मेरा इतना लगाव है कि जब भी कोई गीतकार, संगीतकार या गायक गुज़र जाता है तो लगता है मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा चला गया।
आज गीतकार योगेश नहीं रहें। उनका गीत - कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे - कोविड की ख़बरों के साथ टीवी, रेडियो और सोशियल मीडिया पर बहुत चला।
मुझे शब्दों से खेलना अच्छा लगता है। और शब्दों के विभिन्न प्रयोगों में बहुत रूचि है। उनके गीतों में शब्दों की बहुत अहमियत रहती थी। संगीतकारों ने उन्हें सुरीली धुनों से सँवारा भी बहुत ख़ूबसूरती से हैं। लेकिन उनके शब्द फिर भी दब नहीं जाते हैं। वे उभर कर आते हैं।
आज मन उदास भी है, तो ख़ुशी भी है कि वे अपनी छोटी सी ज़िन्दगी को कितना बड़ा कर गए, इन मधुर गीतों को हमारे ज़हन में छोड़ कर।
1.
जिन्होने सजाएँ यहाँ मेले
सुख-दुख संग-संग झेले
वो ही चुनकर ख़ामोशी
यूँ चले जाएँ अकेले कहाँ
2.
दिल जाने मेरे सारे भेद ये गहरे
हो गए कैसे मेरे सपने सुनहरे
ये मेरे सपने यही तो हैं अपने
मुझसे जुदा न होंगे इनके ये साये
3.
कभी सुख, कभी दुख, यही ज़िंदगी है
ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी है
नये फूल कल फिर डगर में खिलेंगे
4.
वही है डगर, वही है सफ़र
है नहीं साथ मेरे मगर
अब मेरा हमसफ़र
इधर-उधर ढूँढे नज़र
कहाँ गईं शामें मदभरी
वो मेरे, मेरे वो दिन गये किधर
5.
मौसम मिला वो कहीं एक दिन मुझको
मैने कहा रूको खेलो मेरे संग तुम
मौसम भला रुका जो वो हो गया गुम
मैने कहा अपनों से चलो
तो वो साथ मेरे चल दिए
और ये कहा जीवन है
भाई मेरे भाई चलने के लिए
6.
महफ़िल में कैसे कह दें किसी से,
दिल बंध रहा है किस अजनबी से
हाय करे अब क्या जतन
सुलग सुलग जाए मन
मैंने उपर उनके प्रसिद्ध गीतों के अंतरे ही दिए हैं। अक्सर संगीत और मुखड़े इतने हावी हो जाते हैं कि कुछ अंतरों के सौन्दर्य से हम अनभिज्ञ रह जाते हैं।
पूरे गीत इस प्लेलिस्ट में सुने जा सकते हैं।
https://Tinyurl.com/RahulYogesh
राहुल उपाध्याय । 29 मई 2020 । सिएटल
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