न छनछन पायल बजती है
न छन-छन के धूप आती है
लेकिन स्वाद होंठों पर है प्रेम का ऐसा
कि बहार हर सू नज़र आती है
तू मेरी है या मैं तेरा
हो गया तर्क-वितर्क बहुतेरा
अब तो क्षण-क्षण वसुंधरा
मधुर गीत ही गाती है
हम साथ नहीं और साथ भी हैं
सुबह, शाम और रात भी हैं
कहने को कोई बात नहीं
बिन कहे समझ आ जाती है
राहुल उपाध्याय । 19 मई 2020 । सिएटल
2 comments:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 20 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अब तो क्षण-क्षण वसुंधरा
मधुर गीत ही गाती है
–अति सुंदर लेखन
@कभी-कभी माँ बच्चों को दंड देकर संतुष्ट होती है।
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