जल अगर हमसे कभी भी जुदा हो जाए
ग़ैर मुमकिन है कि सुख चैन से हम जी पाए
जिस्म मिट जाए के तब जान फ़ना हो जाए
उस घड़ी सब को सताएँगीं प्यासी आहें
आग बरसाएँगी सहरा की सुलगती राहें
और हर साँस झुलसने की सज़ा हो जाए
आज तदबीर अगर कर लें ज़माने वाले
हो सकता है बदल जाए दिन आने वाले
आज सम्हलें तो युग-युग की दवा हो जाए
ज़लज़ले आएँ ख़तरनाक बलाएँ घेरे
कुछ न कर पाए जो तेज़ हवाएँ घेरे
हल जो पानी की समस्या हो जाए
राहुल उपाध्याय । 25 अप्रैल 2022 । सिएटल
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