कितने शवों को
कितनी बार
छोड़ा मैंने
कर के प्यार
अंत समय में
आई बुद्धि
ये नहीं मेरी
असली हस्ती
छोड़ा जल्दी
बदबूदार
होश आया तो
होंठ सूखे थे
बंधु-बाँधव से
तार टूटे थे
कह ना पाया
कुछ भी यार
अगला अपाइंटमेंट
था फिर रेडी
चड़ गया वेदी
भेड़ की भाँति
छोड़ चित्कार
भरी किलकार
आवागमन का
चलता दौर
इसके आगे
कुछ नहीं और
राज़दार रहें
सब राज़दार
राहुल उपाध्याय । 7 अप्रैल 2022 । सिएटल
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