Friday, September 30, 2022

अब सड़कें सीधी नहीं बनतीं

अब सड़कें सीधी नहीं बनतीं 

पार्क रिक्टेंगल नहीं होते

बिल्डिंगें आड़ी-तिरछी होती हैं 

कभी सर तिरछा होता है

तो कभी कोहनी कहीं निकली होती है 


आजकल सीधा-सपाट किसे पसंद आता है 

घड़ियाँ भी गोल नहीं होतीं हैं 

कॉफी का मग भी मुड़ा-तुड़ा होता है 


हो सकता है

एक दिन

सूरज भी

गोल ना निकले


राहुल उपाध्याय । 30 सितम्बर 2022 । सिएटल 

Thursday, September 29, 2022

संवाद

किसी ने कहा

रामलीला के लिए 

संवाद लिख दो


मैंने लिख दिए


रामलीला हुई

अच्छी हुई 


लेकिन खेद है कि

उसमें मेरा कहीं नाम नहीं 


राहुल उपाध्याय । 29 सितम्बर 2022 । सिएटल 



Wednesday, September 28, 2022

मन्दिर-मन्दिर घूमे राजा


मन्दिर-मन्दिर घूमे राजा

मन्दिर है कि बगिया 

मन्दिर के ये चक्कर काटे

पण्डित हैं कि मुखिया 


चुना सुनकर इनमें है

विकास की क्षमता

लेकिन इनका मन तो है

मन्दिरों में रमता

जाते कभी मथुरा-काशी

कभी ये अयोध्या 


आए दिन हैं त्योहार आते

आए दिन हैं सजते

जनता मारी-मारी फिरे

कैमरे में ये हँसते 

इनका न कोई इमान-धरम है

बस बनते हैं बढ़िया 


झगड़े-वगड़े चलते रहते

पचड़ों में न पड़ते

लफ़्फ़ाज़ी में नम्बर वन

किताबें न पढ़ते 

ज्ञान पूरा बच्चों वाला

पीता जिसे मीडिया


राहुल उपाध्याय । 28 सितम्बर 2022 । सिएटल 


Tuesday, September 27, 2022

वो हैं मासूम

वो हैं मासूम

मासूमियत का पता देते हैं 

हम तो आशिक़ हैं

आशकी का मज़ा लेते हैं 


वक्त आए जो कभी 

सब ख़त्म हुआ पाते हैं 

कभी सेल्फ़ी तो 

कभी ❤️ से हवा देते हैं 


नए ज़माने के नए रंग

कहाँ मालूम हमको

वो बताते हैं और हम

सर को हिला देते हैं 


वो हैं कमसिन और 

हैं ज्ञान की खान मगर

उनकी महफ़िल में 

हम आदाब बजा देते हैं 


हाँ ये रिश्ता है दूर का

फ़ासले का सही

ये क्या कम है कि

वो दीदार करा देते हैं 


राहुल उपाध्याय । 27 सितम्बर 2022 । सिएटल 

Sunday, September 25, 2022

जो मैं जानता कि

जो मैं जानता कि

यह तुम्हारा आखरी टेक्स्ट है

तो कुछ और करता

कुछ और कहता

यूँ चुप न रहता

चुप्पी न साध लेता

तुम्हें रोकता

रोक ही लेता

जाने न देता


तुम परम तत्व में विलीन हो गई होती

तो बात और होती

दुख तो होता

पर इतना नहीं कि

तुम हो कर भी नहीं 

तुम हो पर तुम्हारे वजूद का

एक निशान भी नहीं 

डीपी नहीं 

डीपी में कोई हँसता इंसान नहीं 

लास्ट सीन नहीं 

स्टेटस नहीं 

मेरा स्टेटस देखा कि नहीं  

उसका भी कोई प्रमाण नहीं 


तुम हो

और मेरे स्फियर में नहीं 

इससे बड़ा कोई दुख नहीं 


न उसने

न उसने

न उस या इस महफ़िल में 

किसी ने तुम्हारा हवाला दिया

तुम्हारा सलाम पहुँचाया

या तुमसे मिलने का ज़िक्र किया

तुम्हारी निंदा की या तुम्हारी प्रशंसा की 

जैसे कि तुम मेरे तो क्या

उनके भी स्फियर में नहीं 


न तुम इस दुकान या उस दुकान पे

न इस मोड़ या उस मोड़ पे

न इस मन्दिर, या उस मन्दिर में 

न इस बाग, या उस बाग में 

न इस पिकनिक, न उस पिकनिक में

न इस गेटटुगेदर, उस गेटटुगेदर में 

कहीं न मिली


तुम हो

इसका आभास है मुझे 


तुम किसी और की हो गई होती तो

बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत 

दुख होता 

मर ही गया होता


तुम हो

और एक आस सी बन कर मुझे 

ज़िन्दा क्यों रख रही हो 

क्यों न मुझे इस आस से

आज़ाद कर देती हो

अब कितने पहाड़ तोड़ूँ 

कितने सहरा पार करूँ 

कि जिसे पा न सकूँ 

उसे पाने की आस रखूँ 


कई बार लगा कि 

मैं तुमसे उबर चुका हूँ 

इन वादियों 

इन फूलों 

इन झीलों 

इन झरनों में 

तुम्हें गाड़ चुका हूँ 

लेकिन तुम हो कि

अब भी ज़िन्दा हो 

मेरे घर के किसी कोने में 

मेरे दिल के किसी आईने में


राहुल उपाध्याय । 25 सितम्बर 2022 । सिएटल 




विलायत की झूठी कहानी पे रोए

विलायत की झूठी कहानी पे रोए

बड़ी चोट खाई जवानी में रोए


न सोचा न समझा टिकट काट डाला

भेड़ चाल ने हमें मार डाला

आधे ज्ञान की मेहरबानी पे रोए


ख़बर क्या थी होंठों को सी के रहेंगे 

चाह कर भी घर को हम जा ना सकेंगे 

जीए तो मगर ज़िन्दगानी पे रोए


(शकील बदायुनी से क्षमायाचना सहित) 

राहुल उपाध्याय । 25 सितम्बर 2022 । सिएटल 



Thursday, September 22, 2022

कम्बल

36 साल पहले

के-मार्ट से ख़रीदा कम्बल 

आज भी मेरे साथ है 

क्यूँकि वह बेरूह, बेनूर है


जिसमें रूह है, नूर है

वह नश्वर है 


मम्मी के ब्रश में 

कुछ बाल अटके पड़े हैं

वे भी अमर हैं


राहुल उपाध्याय । 21 सितम्बर 2022 । सिएटल 




Saturday, September 17, 2022

इतवारी पहेली: 2022/09/18


इतवारी पहेली:


बड़ा ही मशहूर है शहर ### 

जहाँ से वह यह भी और वह ###


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 25 सितम्बर को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 18 सितम्बर 2022 । सिएटल 















इतवारी पहेली: 2022/09/18



सशक्त महिला ऐसी नगर में इक आई

संस्था की बन गई एक और 

इकाई 


राहुल उपाध्याय । 11 सितम्बर 2022 । सिएटल 








Re: इतवारी पहेली: 2022/09/11



On Sat, Sep 10, 2022 at 11:20 PM Rahul Upadhyaya <kavishavi@gmail.com> wrote:

इतवारी पहेली:


सशक्त महिला ऐसी नगर में ## ##

संस्था की बन गई एक और 

### 


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 18 सितम्बर को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 11 सितम्बर 2022 । सिएटल 















Friday, September 16, 2022

यादों में बिछड़े यार की कितना सुकून है

यादों में बिछड़े यार की कितना सुकून है

चैन कहाँ मिलेगा वो जो मिलता है प्रेम में 


हाथों में आईना नहीं कलम है धारदार 

लिखने लगे हैं फ़ैसले संग-ओ-सलीब के 


ढलने को वस्ल की रात हो तो चढ़ता फ़ितूर है 

उजालों को जा के बोल दूँ कि आए वो देर से 


ग़लती नहीं की आपने कि दिल चुरा लिया 

दिल की तो आरज़ू यही कि ख़ुशबू में साँस ले


अच्छा ही है कि मरने पे सड़ता शरीर है

प्रेम छटाँक भर भी नहीं रहता है देह से


राहुल उपाध्याय । 16 सितम्बर 2022 । सिएटल 




Saturday, September 10, 2022

इतवारी पहेली: 2022/09/11


इतवारी पहेली:


सशक्त महिला ऐसी नगर में ## ##

संस्था की बन गई एक और 

### 


इन दोनों पंक्तियों के अंतिम शब्द सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। लेकिन जोड़-तोड़ कर लिखने में अर्थ बदल जाते हैं। हर # एक अक्षर है। हर % आधा अक्षर। 


जैसे कि:


हे हनुमान, राम, जानकी

रक्षा करो मेरी जान की


ऐसे कई और उदाहरण/पहेलियाँ हैं। जिन्हें आप यहाँ देख सकते हैं। 


Https://tinyurl.com/RahulPaheliya



आज की पहेली का हल आप मुझे भेज सकते हैं। या यहाँ लिख सकते हैं। 


सही उत्तर न आने पर मैं अगले रविवार - 18 सितम्बर को - उत्तर बता दूँगा। 


राहुल उपाध्याय । 11 सितम्बर 2022 । सिएटल 















Thursday, September 8, 2022

गुज़रा है कोई

गुज़रा है कोई 

पर रोया नहीं कोई 

गीता के जैसे ज्ञानी हैं सब

बुरी भी नहीं बिलकुल थी वो

कि मरने से जिसके किसी को राहत मिली हो


क्या है वजह कि 

हम रोते नहीं 

रोना तो क्या 

तिल भर भी दुख होता नहीं 

क्या यही था जुर्म कि वो एक लम्बे समय तक टिकी रही

काम में कभी कोई कमी न रही

न लड़ी, न झगड़ी, न किसी के आड़े आई


अच्छा ही है कि कोई भी अमर नहीं 


राहुल उपाध्याय । 8 सितम्बर 2022 । सिएटल 


हज़ारों चुनाव जीतें हैं हम

हज़ारों चुनाव जीतें हैं हम

हज़ारों चुनाव जीतेंगे हम

आज अगर हारे हैं हम

कल को ज़रूर जीतेंगे हम


हम जो निकट आए कुछ तो है दम

लम्बा सफ़र कुछ हुआ तो है कम

अगली पीढ़ी आगे बढ़े

इसलिए किया आज है श्रम

इस देश से उस देश तक

पग-पग पल-पल छाएँगे हम


दिल ने जो चाहा सदा करते हैं हम

जहां भर की बातों से न डरते हैं हम

कभी रहें दब के छल से, कपट से

अब हम हैं रखते मिल के कदम

इस राह की मंज़िल है जो

दमख़म से पाएँगे हम


राहुल उपाध्याय । 8 सितम्बर 2022 । सिएटल 




Monday, September 5, 2022

क्यों पढ़ता हूँ कहानियाँ

क्यों पढ़ता हूँ कहानियाँ 

जिनमें होता है मेरा सुख-दु:ख


क्यों पढ़ता हूँ कविताएँ 

जिनमें होता है मेरा सुख-दु:ख


क्यों देखता हूँ फ़िल्में 

जिनमें होता है मेरा सुख-दु:ख


क्या जीवन जीना ही काफ़ी नहीं है 

जो मैं उन पलों को दोबारा जीता हूँ?


कहानियाँ पढ़ कर

कविताएँ पढ़ कर

फ़िल्में देख कर

मैं इसी जन्म में पुनर्जीवित हो जाता हूँ 

एक ही जन्म में कई जन्मों को जी लेता हूँ 


राहुल उपाध्याय । 5 सितम्बर 2022 । सिएटल