Sunday, September 25, 2022

जो मैं जानता कि

जो मैं जानता कि

यह तुम्हारा आखरी टेक्स्ट है

तो कुछ और करता

कुछ और कहता

यूँ चुप न रहता

चुप्पी न साध लेता

तुम्हें रोकता

रोक ही लेता

जाने न देता


तुम परम तत्व में विलीन हो गई होती

तो बात और होती

दुख तो होता

पर इतना नहीं कि

तुम हो कर भी नहीं 

तुम हो पर तुम्हारे वजूद का

एक निशान भी नहीं 

डीपी नहीं 

डीपी में कोई हँसता इंसान नहीं 

लास्ट सीन नहीं 

स्टेटस नहीं 

मेरा स्टेटस देखा कि नहीं  

उसका भी कोई प्रमाण नहीं 


तुम हो

और मेरे स्फियर में नहीं 

इससे बड़ा कोई दुख नहीं 


न उसने

न उसने

न उस या इस महफ़िल में 

किसी ने तुम्हारा हवाला दिया

तुम्हारा सलाम पहुँचाया

या तुमसे मिलने का ज़िक्र किया

तुम्हारी निंदा की या तुम्हारी प्रशंसा की 

जैसे कि तुम मेरे तो क्या

उनके भी स्फियर में नहीं 


न तुम इस दुकान या उस दुकान पे

न इस मोड़ या उस मोड़ पे

न इस मन्दिर, या उस मन्दिर में 

न इस बाग, या उस बाग में 

न इस पिकनिक, न उस पिकनिक में

न इस गेटटुगेदर, उस गेटटुगेदर में 

कहीं न मिली


तुम हो

इसका आभास है मुझे 


तुम किसी और की हो गई होती तो

बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत 

दुख होता 

मर ही गया होता


तुम हो

और एक आस सी बन कर मुझे 

ज़िन्दा क्यों रख रही हो 

क्यों न मुझे इस आस से

आज़ाद कर देती हो

अब कितने पहाड़ तोड़ूँ 

कितने सहरा पार करूँ 

कि जिसे पा न सकूँ 

उसे पाने की आस रखूँ 


कई बार लगा कि 

मैं तुमसे उबर चुका हूँ 

इन वादियों 

इन फूलों 

इन झीलों 

इन झरनों में 

तुम्हें गाड़ चुका हूँ 

लेकिन तुम हो कि

अब भी ज़िन्दा हो 

मेरे घर के किसी कोने में 

मेरे दिल के किसी आईने में


राहुल उपाध्याय । 25 सितम्बर 2022 । सिएटल 




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