अब सड़कें सीधी नहीं बनतीं
पार्क रिक्टेंगल नहीं होते
बिल्डिंगें आड़ी-तिरछी होती हैं
कभी सर तिरछा होता है
तो कभी कोहनी कहीं निकली होती है
आजकल सीधा-सपाट किसे पसंद आता है
घड़ियाँ भी गोल नहीं होतीं हैं
कॉफी का मग भी मुड़ा-तुड़ा होता है
हो सकता है
एक दिन
सूरज भी
गोल ना निकले
राहुल उपाध्याय । 30 सितम्बर 2022 । सिएटल
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