यादों में बिछड़े यार की कितना सुकून है
चैन कहाँ मिलेगा वो जो मिलता है प्रेम में
हाथों में आईना नहीं कलम है धारदार
लिखने लगे हैं फ़ैसले संग-ओ-सलीब के
ढलने को वस्ल की रात हो तो चढ़ता फ़ितूर है
उजालों को जा के बोल दूँ कि आए वो देर से
ग़लती नहीं की आपने कि दिल चुरा लिया
दिल की तो आरज़ू यही कि ख़ुशबू में साँस ले
अच्छा ही है कि मरने पे सड़ता शरीर है
प्रेम छटाँक भर भी नहीं रहता है देह से
राहुल उपाध्याय । 16 सितम्बर 2022 । सिएटल
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