वो हैं मासूम
मासूमियत का पता देते हैं
हम तो आशिक़ हैं
आशकी का मज़ा लेते हैं
वक्त आए जो कभी
सब ख़त्म हुआ पाते हैं
कभी सेल्फ़ी तो
कभी ❤️ से हवा देते हैं
नए ज़माने के नए रंग
कहाँ मालूम हमको
वो बताते हैं और हम
सर को हिला देते हैं
वो हैं कमसिन और
हैं ज्ञान की खान मगर
उनकी महफ़िल में
हम आदाब बजा देते हैं
हाँ ये रिश्ता है दूर का
फ़ासले का सही
ये क्या कम है कि
वो दीदार करा देते हैं
राहुल उपाध्याय । 27 सितम्बर 2022 । सिएटल
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