मन्दिर-मन्दिर घूमे राजा
मन्दिर है कि बगिया
मन्दिर के ये चक्कर काटे
पण्डित हैं कि मुखिया
चुना सुनकर इनमें है
विकास की क्षमता
लेकिन इनका मन तो है
मन्दिरों में रमता
जाते कभी मथुरा-काशी
कभी ये अयोध्या
आए दिन हैं त्योहार आते
आए दिन हैं सजते
जनता मारी-मारी फिरे
कैमरे में ये हँसते
इनका न कोई इमान-धरम है
बस बनते हैं बढ़िया
झगड़े-वगड़े चलते रहते
पचड़ों में न पड़ते
लफ़्फ़ाज़ी में नम्बर वन
किताबें न पढ़ते
ज्ञान पूरा बच्चों वाला
पीता जिसे मीडिया
राहुल उपाध्याय । 28 सितम्बर 2022 । सिएटल
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