रात को सोते समय
बेटे को सुनाता हूँ कहानी
राम के
कृष्ण के
उद्भव की कहानी
बहुत दिनों तक
सुनने के बाद
बेटा एक दिन बोला
कृष्ण की माँ थी देवकी
और यशोदा जी ने उन्हें पाला
राम की माँ थी कौशल्या
और कैकयी ने उन्हें निकाला
लेकिन
रावण की
कंस की
माँ के बारे में
क्यूँ नहीं कुछ बताया?
क्या कहूँ?
कैसे कहूँ?
कैसे उसे समझाऊँ
कि इस कोशिश में
कि कहानी सशक्त बन सके
कई खटकर्म किए हैं जाते
घटनाएँ जोड़ी जाती हैं
पात्र छाँटे जाते
खलनायक पैदा नहीं होते
खलनायक बनाए हैं जाते
तरह तरह के जामे
पहनाए उन्हें हैं जाते
नख-शिखा-दाढ़ी-मूँछ
सर-सींग लगाए हैं जाते
खलनायक पैदा नहीं होते
खलनायक बनाए हैं जाते
सिएटल 425-898-9325
विजय दशमी, 2009
Monday, September 28, 2009
माताएँ खलनायकों की
Thursday, September 17, 2009
अर्जुन आँखें
हाईवे बने
और गाँव के गाँव
उजड़ गए
लोग
फ़र्राटे से
हवा से बातें करते-करते
उपर-उपर से निकल गए
जब से जी-पी-एस आया
समंदर, झील, तालाब, झरने
सब के सब ओझल होते जा रहे हैं
इस्कान का मंदिर
बच्चों का स्कूल
रंग बदलते पत्ते
सामने होते हुए भी
दिखाई नहीं देते
हमारी
अर्जुन आँखें
गड़ी रहती हैं
एल-सी-डी स्क्रीन के
एक
नीले
नुकीले
तीर पर
सिएटल 425-898-9325
17 सितम्बर 2009
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:36 PM
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Tuesday, September 15, 2009
गुल खिलाना है बाकी
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:11 PM
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Monday, September 14, 2009
पहेलियाँ
पिछले वर्ष की तरह इस बार भी हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर प्रस्तुत हैं कुछ पहेलियाँ। पहेलियों के उत्तर से 'शुद्ध हिंदी' वालों को आपत्ति हो सकती है। क्योंकि कुछ शब्द या तो उर्दू के हैं या अंग्रेज़ी के - शुद्ध हिंदी के नहीं। या ये कहूँ कि उनकी जड़ संस्कृत में नहीं है। मैं ये समझता हूँ कि ऐसे शब्दों से हिंदी समृद्ध होती है, नष्ट नहीं। चाहे कितनी ही नदियाँ सागर में मिल जाए, सागर नष्ट नहीं होता, भ्रष्ट नहीं होता, प्रदूषित नहीं होता।
कैसे हल करें? उदाहरण स्वरूप पहेली #19 से पहेली #26 और उनके हल देखें। कुछ उदाहरण नीचे भी देख लें।
(1)
जब भी कहीं लगा X XX(1, 2)
साधु-संतों को किया XXX (3)
(2)
यह बात सच सौ XXX है (3)
कि आरक्षण वालों ने कम XX X है (2,1)
(3)
जिन्हें सताते XXXX हैं (4)
क्या वे भक्त XX X X हैं? (2, 1, 1)
(4)
इठलाती हसीनाओं को कभी अपना X XX (1, 2)
क्या पता कब डस लें बन के XXX (3)
बोनस:
तुम्हारी बाहों ने दी थी मुझे XX XXX (2,3)
वो सच था या थी कोरी XXXX ? (3.5)
उदाहरण:
क -
जब तक देखा नहीं ??? (3)
अपनी खामियाँ नज़र ?? ?(2, 1)
उत्तर:
जब तक देखा नहीं आईना
अपनी खामियाँ नज़र आई ना
ख -
मफ़लर और टोपी में छुपा ?? ?? (2, 2)
जैसे ही गिरी बर्फ़ और आई ??? (3)
उत्तर:
मफ़लर और टोपी में छुपा सर दिया
जैसे ही गिरी बर्फ़ और आई सर्दियाँ
अधिक मदद के लिए अन्य पहेलियाँ यहाँ देखें:
http://mere--words.blogspot.com/search/label/riddles_solved
शुद्ध हिंदी के विषय पर आप मेरा एक लेख और एक कविता यहाँ देख सकते हैं:
शुद्ध हिंदी - एक आईने में - http://mere--words.blogspot.com/2007/12/blog-post_03.html
बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे - http://mere--words.blogspot.com/2008/06/blog-post_18.html
सद्भाव सहित,
राहुल
पहेली 31 का उत्तर
खाऊँ जो एक तो हो जाऊँ मैं चित्त
खा लूँ जो तीन तो हो जाऊँ मैं ठीक
खा के जिसे जवां होते शहीद
खाते उसे बच्चे खुशी से खरीद
कैसा ये जादू है? कैसी है ये माया?
समझा वही जो रंगोली देख पाया
=========================
इस पहेली का उत्तर इसकी अंतिम पंक्ति में छुपा हुआ है।
उत्तर: गोली
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:22 PM
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Sunday, September 13, 2009
तुम्हारे बिना
बागी ---
बागबां ---
बागों ---
गुल ---
ऐसा नहीं
कि गला रूंध गया
या कलम टूट गई
या शब्द नहीं मिलें
बल्कि
मैं यह दिखलाना चाहता हूँ कि
कितने बेमानी हैं शब्द
शब्दों के बिना
जैसे
मैं
तुम्हारे बिना
सिएटल 425-898-9325
13 सितम्बर 2009
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:16 PM
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Saturday, September 12, 2009
मेरे दिल पर जो लिखा है
ये मेरे दिल पर
जो तुमने
टाईप राईटर से लिखा है
उसे अगर बदलोगी
तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी
लिखोगी कुछ
पढ़ा कुछ जाएगा
नया-पुराना सब
गड्डमड्ड हो जाएगा
अगर बदलना चाहो
तो सिर्फ़ दो ही सूरते हैं
या तो मुझे भस्म कर दो
या फिर कोई ऐसी करेक्शन फ़्लूईड ले आओ
जो फिर से मुझे कोरा कर दे
सिएटल 425-898-9325
12 सितम्बर 2009
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:55 PM
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Friday, September 11, 2009
तुम्हारी सेहत
आओगे तुम तो, तुमसे करवाएंगे काम
बागों में बगीचों में तुमसे डलवाएंगे खाद
होटलों के गंदे कमरे तुमसे करवाएंगे साफ़
डाक्टरों की वर्दियाँ भी तुमसे करवाएंगे तैयार
लेकिन तुम्हारी सेहत का न कभी कोई होगा जिम्मेदार
वैध-अवैध के चक्कर में कुछ ऐसे फ़सें वैद्य-साहूकार
कि देशवासियों को छोड़ के करते दुनिया का उपचार
आज नाईजिरिया तो कल ईथियोपिया का करते जीर्णोंद्धार
और दूर-दराज के गाँव में जा के देते टीकों का उपहार
लेकिन तुम्हारी सेहत के न वे कभी बनते जिम्मेदार
वैध-अवैध का भेद न देखें, जब जम कर कर लेती सरकार
काम कराए और खूब कराए, कम वेतन पे साहूकार
जो भी चाहो हम से ले लो, पल पल ललचाते बाज़ार
पैसा-कौड़ी पास नहीं तो ले लो किश्तों पे उधार
लेकिन तुम्हारी सेहत का न कभी कोई होगा जिम्मेदार
बेटा वैध, बाप अवैध, जहाँ कहता हो संविधान
कागज़ के पुर्जो पे निर्भर जहाँ हो इंसानों की जान
दूसरों की ज़मी छीन के जहाँ पर बनते हो मकान
उस जहाँ के बाशिंदे क्या समझेंगे क्या होता है ईमान?
इसीलिए तुम्हारी सेहत का न कभी कोई होता जिम्मेदार
सिएटल 425-898-9325
11 सितम्बर 2009
Wednesday, September 9, 2009
नौ, नौ, नौ?
नौ, नौ, नौ?
नो, नो, नो!
बस
तीन साल,
तीन महीने,
और तीन दिन और
फिर
विश्व में होगा
एक भयंकर विस्फ़ोट
आएगी प्रलय
और
होगा सबका अंत
कहते हैं
टी-वी पे बैठे विद्वत् जन
अरे! गिनती गिनना अगरचे आवश्यक अवश्य
गूढ़ अर्थ तलाशना उनमें है एक व्यर्थ प्रपंच
कैलेंडरों में तिथियाँ आती-जाती रहीं सर्वदा
लेकिन कैलेंडर देख के कभी कुछ न घटा
न बिजली गिरी, न बरसी घटा
न आए भूकम्प, न उबली धरा
आज तक आए जब-जब संकट यहाँ
इंसा का हाथ मिला सदा हाथ पे धरा
सिएटल 425-898-9325
9 सितम्बर 2009
Posted by Rahul Upadhyaya at 10:56 PM
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Tuesday, September 8, 2009
हर शाम
कुछ आते हैं उग
कुछ उगाता हूँ मैं
हर शाम
दर्द की फसल उगाता हूँ मैं
टेबल लैम्प की
पीली
मटमैली
रोशनी में
आँखें मूंदे
दर्द की उंगली थामे
मैं
पहुँच जाता हूँ
तुम तक
तुम तक
तुम तक
और
उस तक
न कोई है द्वंद
न कोई है तर्क
तुममें और उसमें
न कोई है फ़र्क
जाता हूँ सोने
भीग जाता है तकिया
उगता है सूरज
सब जाता है सूख
होते-होते शाम
कुछ आते हैं उग
कुछ उगाता हूँ मैं
हर शाम …
सिएटल 425-898-9325
8 सितम्बर 2009
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:02 PM
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Wednesday, September 2, 2009
तेरह महीने पहले
तेरह महीने पहले
जो कुछ घटा था
उससे
जीवन घटा नहीं
जीवन बढ़ा था
घटाएँ
घटाना नहीं
सीखाती हैं जोड़ना
सोचो भला
कैसे भरते जलाशय?
गरज-गरज कर
जो न बरसती घटाएँ?
बिना गरज के
कौन करता है ऐसे?
नि:स्वार्थ भाव से
दु:ख हरता है ऐसे?
तेरह महीने पहले
जो कुछ घटा था
उससे
जीवन घटा नहीं
जीवन बढ़ा था
सिएटल 425-898-9325
2 सितम्बर 2009
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:37 PM
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Tuesday, September 1, 2009
मैं भूल जाता हूँ अक्सर
तुम्हें भूलना
मैं भूल जाता हूँ अक्सर
और
कर लेता हूँ याद
जब-जब
ढलता है सूरज
जलता है दीपक
उड़ती हैं ज़ुल्फ़ें
खनकती है पायल
हँसते हैं बच्चे
घिरते हैं बादल
सोचता हूँ
एक प्रोग्राम बना लूँ
कैलेंडर में
एक रिमाईंडर लगा दूँ
जो हर दूसरे दिन
तुम्हें भुलाना है
मुझे याद दिला दे
सिएटल 425-898-9325
1 सितम्बर 2009
Posted by Rahul Upadhyaya at 11:06 PM
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