बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे
नए हैं तेवर और नए ही रंग हैं मेरे
शुद्ध भाषा के शीशमहल में न कैद रख सकोगे मुझको
मैं तुम्हे आगाह कर देता हूँ कि संग संग हैं मेरे
ये तेरी-मेरी भाषा का साम्प्रदायिक तर्क तर्क दो
जैसे सुंदर हैं तुम्हारे वैसे ही सुंदर अंग हैं मेरे
कहीं संकीर्णता का जंग खोखला न कर दे साहित्य को
इसलिए हर महफ़िल में छिड़ते हैं हर रोज़ जंग मेरे
संस्कृत से है माँ का रिश्ता और उर्दू बहन है मेरी
खिलाती-पिलाती है अंग्रेज़ी और बॉस फ़िरंग हैं मेरे
माँ-बहन को एक करना चाहता है 'राहुल'
नासमझ समझेंगे कि ये नए हुड़दंग हैं मेरे
सिएटल,
18 जून 2008
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संग (उर्दू) - stone
संग (हिंदी) - with
तर्क (उर्दू) - abandon
तर्क (हिंदी) - arguments
जंग (उर्दू) - war
जंग (हिंदी) - rust
Wednesday, June 18, 2008
बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:30 PM
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Labels: bio, hinglish, TG, world of poetry
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1 comments:
आज Munawar Rana का यह शेर पढ़ा तो आपकी कविता "बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे" याद आ गयी:
"लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिंदी मुस्कुराती है"
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