Wednesday, June 18, 2008

बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे

बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे
नए हैं तेवर और नए ही रंग हैं मेरे

शुद्ध भाषा के शीशमहल में न कैद रख सकोगे मुझको
मैं तुम्हे आगाह कर देता हूँ कि संग संग हैं मेरे

ये तेरी-मेरी भाषा का साम्प्रदायिक तर्क तर्क दो
जैसे सुंदर हैं तुम्हारे वैसे ही सुंदर अंग हैं मेरे

कहीं संकीर्णता का जंग खोखला न कर दे साहित्य को
इसलिए हर महफ़िल में छिड़ते हैं हर रोज़ जंग मेरे

संस्कृत से है माँ का रिश्ता और उर्दू बहन है मेरी
खिलाती-पिलाती है अंग्रेज़ी और बॉस फ़िरंग हैं मेरे

माँ-बहन को एक करना चाहता है 'राहुल'
नासमझ समझेंगे कि ये नए हुड़दंग हैं मेरे

सिएटल,
18 जून 2008
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संग (उर्दू) - stone
संग (हिंदी) - with
तर्क (उर्दू) - abandon
तर्क (हिंदी) - arguments
जंग (उर्दू) - war
जंग (हिंदी) - rust

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1 comments:

Anonymous said...

आज Munawar Rana का यह शेर पढ़ा तो आपकी कविता "बदलते ज़माने के बदलते ढंग हैं मेरे" याद आ गयी:

"लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिंदी मुस्कुराती है"