Sunday, June 1, 2008

मैंने पूछा एन-आर-आई से

मैंने पूछा एन-आर-आई से
कि तू घर जाएगा कभी
इस जनम में कभी
एन-आर-आई ने कहा
ग्रीन-कार्ड की क़सम
नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा एन-आर-आई से ...

हाथ हैं कि भीख के कटोरें
जो रात दिन पाई-पाई बटोरें
कहने को वैसे हैं इंजीनियर
पर कर्म ऐसे कि जैसे हो चटोरें
मैंने पूछा एन-आर-आई से कि
तेरा पेट भर पाएगा कभी
इस जनम में कभी
एन-आर-आई ने कहा
एक एक डॉलर की क़सम
नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा एन-आर-आई से ...

न मैंने तुमको ख़िताब मिलते देखा
न मैंने तुमको किताब पढ़ते देखा
जब भी देखा तो बस यही देखा

स्वार्थ की सीढ़ी पर तुमको चढ़ते देखा

मैंने पूछा एन-आर-आई से कि
तू सुधर पाएगा कभी
इस जनम में कभी
एन-आर-आई ने कहा
बिल गेट्स की क़सम
नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा एन-आर-आई से ...


जी हज़ूरी जो तुमने दिखाई
पालतू प्राणी भी दे रहे दुहाई
बिन बाप की बेटी कहूँ तुम्हे मैं
या कहूँ एक अनपढ़ लुगाई
मैंने पूछा एन-आर-आई से कि
तू तलाक़ दे पाएगा कभी
इस जनम में कभी
एन-आर-आई ने कहा
मेरे काम की क़सम
नहीं, नहीं, नहीं
मैंने पूछा एन-आर-आई से ...


सिएटल,
1 जून 2008
(आनंद बक्षी से क्षमायाचना सहित)
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एन-आर-आई = NRI
भीख के कटोरें = begging bowls
डॉलर = Dollar
ख़िताब = award
लुगाई = wife

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1 comments:

Anonymous said...

राहुल जी, क्या बात है, खुद्दारी याद दिला दी……॥