Friday, June 27, 2008

उसकी बातों में 'गर दम होता

उसकी बातों में 'गर दम होता
दर्द थोड़ा तो मेरा कम होता

न गीता है सच, न बाईबल है सच
झूठा संसार सभी रहे हैं रच
सच होता तो अलग न धरम होता

न मिलता है वो, न दिखता है वो
सरेआम मंदिरों में बिकता है वो
कहने को साथ वो हरदम होता

'गर होता तन्हा तो अच्छा होता
ख़ुद पर भरोसा तो पक्का होता
न होता वो और न उसका ग़म होता

पहेलीनुमा एक किस्सा है जीवन
अजीब-ओ-गरीब नाटक है जीवन
किरदार को आगे का नहीं इलम होता

सूत्रधार है वो और नायक हूँ मैं
सच पूछो तो एक खलनायक हूँ मैं
मेरे मरने पर ही खेल खतम होता

सिएटल,
27 जून 2008
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'गर = अगर
किरदार = पात्र, character
इलम = इल्म, ज्ञात, जानकारी

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