हर दिन हर एक हिंदू पर
ग्रहों की पड़ती मार है
शनि से लेकर शुक्र तक
हर दिन होता वार है
शांतिप्रिय जनता है लेकिन
शांतिप्रिय नहीं भगवान है
किसी के हाथ में है गदा
तो किसी के हाथ तलवार है
राम मिले थे रावण से
कृष्ण मिले थे कंस से
हम जैसे छुटभईयों का
नहीं दर्शन पर अधिकार है
गलती करते हैं सभी
इंसान भी भगवान भी
गलती हो जाती है जब
वो ले लेते अवतार हैं
राम राम रटता रहूँ
दु:ख मेरे हो जाए दूर
कृष्ण जी गीता में ये
कहते नहीं एक बार हैं
न वेद में न पुराण में
हिंदू का नहीं नाम है
दूसरों ने जो दिया
कर लेता स्वीकार है
मंदिरों की भीड़ में
इंसान खोता जा रहा
पांडित्य और पाखंड का
फ़ैल रहा बाज़ार है
उलटे-सीधे ये रीत-रिवाज
'राहुल' समझ पाता नहीं
इसकी गवाही दे रहे
ये उलटे-सीधे अशआर हैं
सिएटल,
20 जून 2008
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अशआर - एक से ज्यादा शेर, शेर का बहुवचन
शेर = उर्दू आदि की कविता के दो चरणों का समूह
Friday, June 20, 2008
बिचारा हिंदू
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